जस्टिस उदय उमेश ललित ने ली सुप्रीम कोर्ट के 49वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ
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नई दिल्ली । जस्टिस उदय उमेश ललित ने सुप्रीम कोर्ट के 49वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। शपथ लेने के बाद चीफ जस्टिस ने राष्ट्रपति और वहां उपस्थित सभी लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया। रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए, तालियां बजीं और एक बार फिर उन्होंने राष्ट्रपति को प्रणाम किया। इसके बाद चीफ जस्टिस ललित मंच से उतरे और हाथ जोड़े हुए सीधे पहली पंक्ति में एक कोने में पहुंच गए। उन्होंने वहां बैठे 90 साल के अपने पिता और बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश उमेश रंगनाथ ललित के पैर छुए। यह दृश्य देख राष्ट्रपति भवन में तालियां गूंजने लगीं। उन्होंने अपने परिवार के दूसरे सदस्यों का भी पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
जस्टिस ललित का कार्यकाल 74 दिन होगा। वह आठ नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद सबसे सीनियर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बनेंगे। जस्टिस ललित को 2014 में सीधे बार से सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस बनाया गया था। इससे पहले 1971 में जस्टिस एस एम सिकरी पहले चीफ जस्टिस थे, जो सीधे बार से आए थे। शनिवार को आयोजित कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पीएम नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति राम नाम कोविंद, कानून मंत्री किरण रिजिजू समेत अन्य विशिष्ट लोग मौजूद थे।
जस्टिस ललित का जन्म 9 नवंबर 1957 को हुआ था। वह महाराष्ट्र से आते हैं। उन्होंने वकालत की शुरुआत 1983 में बॉम्बे हाई कोर्ट से की। बाद में 1986 में दिल्ली शिफ्ट हो गए। वह क्रिमिनल मामले में बेहतरीन वकीलों में शुमार रहे हैं। 2जी केस में उन्हें 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल पीपी बनाया था। 13 अगस्त 2014 को उन्हें बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर नियुक्त किया गया था।
जस्टिस ललित ने अयोध्या मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था क्योंकि वह बाबरी विध्वंस केस में कल्याण सिंह के लिए कंटेप्ट केस में पेश हुए थे। तीन तलाक को गैर-संवैधानिक करार देने वाली संवैधानिक बेंच में जस्टिस ललित शामिल थे। साथ ही हाल में बॉम्बे हाई कोर्ट के पॉक्सो मामले में स्किन टू स्किन से संबंधित विवादित फैसले को उन्होंने पलट दिया था। चीफ जस्टिस ललित ने कहा है कि वह तीन मुख्य बदलाव करेंगे जिनमें लिस्टिंग सिस्टम में पारदर्शिता लाएंगे। संबंधित बेंच के सामने अर्जेंट मामले की सुनवाई के लिए केस उठाए जाने का सिस्टम रखेंगे साथ ही एक संवैधानिक बेंच हमेशा बैठेगी जो संवैधानिक मामलों की सुनवाई सालभर करेगी।
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