टंगिडि शास्त्र (हास्य व्यंग )
अचगाल क डिजिटल जमना मा भौत कुछ बगत से पैलि बदिल्येगे । पर एक चीज हज्जि भी उन्या उनि च । जो नि बदल्ये वो च एक हैंका क टंगिडि खैंच्ण । कतगै मनख्यूं तै तबरि तक सांस नि आंदी जांदी जबरि तक वो गौं गल्या, ख्वालदार, वार प्वार या बीच बजार मा कैकि डौंणि नि खैंच्ला । जैदिन वो कैक डौंणि खैंच्दि वेदिन वूंथै खाणा भि भलु पचंद अर निंद भि भलि सुंदर आंद ।भै बंदौं द्येख्ये जावा त टंगिडि कु काम सिर्फ शरीर क भार झेलण तक हि सीमित नि च । बल्कि यो कतगै बण्यां बुण्यां काम भि पिरोलि अर खरोलि दींद । कभि कभि त जो काम हूणूं भी रालू वैतै जरा जरा सि मा लटगै दींद । ई टंगिडि क भि कतगै बनि बनि क काम हूंदि । टंगिडि त दुपाया, चौपाया सब्युं पर हूंद पर लोग बाग अपड अपड सज ल्हेकि काम निकल्दिं । बकरा क टंगिडि क, ख्वरुडू क त सूप बणंद । कैंसर वलों खुणि रोज खुडिकि क बणैं द्यावा । वूंक असर बल सीधा कीमौ थिरेपी वलों क टंगडौं फरि हूंद ।
पर द्वि पराण्यूं क टंगिड्यों क काम भौत खतरनाक हूंद एक मुर्गा अर हैंक मनखि । एक क टंगिडि खाण क काम आंद अर हैंका क टंगिडि बिल्काण क काम आंद ।पर द्वि पराण्यूं क टंगिड्यों क काम भौत खतरनाक हूंद एक मुर्गा अर हैंक मनखि । एक क टंगिडि खाण क काम आंद अर हैंका क टंगिडि बिल्काण क काम आंद । अर मि जन अजाण मनखि बिंगण मा इतगा पिछनै छूटि जांद कि वेथै पते नि चल्दु कि यो म्येरि पीठ थम्थ्याणा छींई कि म्येरि इज्जत क फलगट च्वलणा छीं ।
कुल मिलैकि जो लोग बिना बातिक कखि भि टंगुडु कुच्यंदि वो दुपळा ज्यूडा कटण मा भारि सळ्ळी हूंदि । वो अपड टंगुडु जै मकसद से भारि कुमस्यौं मा भि कुच्यांदा छीं वेकु अर्थ वो अपड चित्त से इन लगै दिंदि कि बळ पैलि त हैंका कु काम बिगडलु हि बिगडलु नथर त घडैक घपरौल हि सै ।