ये गाॅव रैवासियूं न लैंटीना घास उखाड़ी कन लगै बांज जंगळ
उत्तराखण्ड मा पलायन अर पुंगड़ बंझड़ कन मा लालटेना घास बड़ू योगदान छ, लालटेना घास कारण खेती, पशुपालन तै बौत नुकसान हूणा। ये लालटेना घास पाणी अर बण मा उपयोगी डाळ बूट सब्ब सूखै देन। लालटेना घास बढद आतंक से परेशान ह्वेकन चैंदकोट क्षेत्र मा गढ वीरांगना तीलू रौतेली वंशजौं गाॅव गुराड़ अर मलेथा छ। ये मलेथा गाॅव मा करीब डेढ दशक पैल तकन पाणी प्राकृतिक सोत हूंद छ्यायी। लैंटीना झाड़ी न गाॅव आसपास जब फैलण शुरू करी त दिखदी ही दिखदी सरा लैंटीना फैल्यूं दिख्याण लगी ग्यायी। गाॅव नजीक पुंगड़ पर जब खेती जगह लैटीना झाड़ी न ले ल्यायी त वख बाघ कुणी बौत सुंदर अड्डा बणी ग्यायी अर शांत इलकू मा बाघ धमक बढण से उंक आतंक फैलण लगी ग्यायी। मलेथा गाॅव भी इनी गाॅव मनन एक गाॅव छ, जख लैटींना न गौं रैवासियूं पाणी दगड़ी होर सुख चैन भी लूठी द्यायी। यनी मा दिल्ली मा एक पत्रिका मा एसोएिट आर्ट डायरेक्टर मलेथा रैवासी चद्रमोहन ज्योति न गाॅव रैवासियूं समस्या दूर कन संकल्प ल्यायी ।
साल 2014 मा चन्द्रमोहन न गौं रैवासियूं दगड़ी एक बैठक करी अर वै मा तय ह्वायी कि गाॅव चारों तरफ लैटीना झाड़ी हटैकन सामुहिक सहभागिता से बांज बुरांस अर काफळ जंगळ विकसित करे जाल। निर्णय लीण इकदम बाद चन्द्रमोहन अपर खर्च पर बांज क पाॅच सौ पौधा लेकन गाॅव पौंछी ग्यायी। सामुहिक सहभागिता से पौधा रोपण शुरू करे ग्यायी अर अगल तीन सालौं मा गाॅव एक किलोमीटर परिधि मा बांज तीन हजार पौधौं रोपण कर दिये ग्यायी। चंद्रमोहन बतै करद कि अजों यूं तीन हजार पौध मनन सात सौ पौधा बच्यां छन अर डाळ बणन तरफ बड़ू हूणा छन। चन्द्रमोहन मने जाव त अगल एक दशक मा गाॅव चारों तरफ बांज घणू जगंळ विकसित ह्वे जाल।
उन इन भी ब्वाल कि लैटींना झाड़ी पहाड़ तै पूरी तरह बरबाद करयाल। गजब बात या छ कि लैटीना तै हटाणा बाबत अजों तकन क्वी ठोस योजना नी बणी पायी। लैटीना हटैकन अगर बांज, बुरांस काफळ अर ईमारती डाळ पौधा रोपण करे जाव त पूर पहाड़ तस्वीर अर तकदीर बदली जाली। बांज पौधारोपण प्राकृतिक पाणी सोत तै दुबर जीवित कन मा फैदामंद साबित ह्वाल।