युवा दिवस 2021 : जोश से लबरेज इन युवा खिलाड़ियों ने बढ़ाया देश का मान
12 जनवरी का दिन पूरे देश में युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश के महान दार्शनिक और विश्व में भारत के अध्यात्म का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद मंगलवार को 158वीं जयंती है। उनके विचार और जीवन हमारे लिए प्रेरणादायी हैं। ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए’ का संदेश देने वाले विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्त्रोत थे। इस मौके पर आइए एक नजर डालते हैं देश के उन युवा खिलाड़ियों, जिन्होंने बढ़ाया देश का मान…
दीपक पूनिया, पहलवान
हरियाणा के लोग अपनी सभ्यता, परंपरा और मेहनत के बीज को कुछ यूं बोते हैं, कि पूरा देश तरक्की से हरा-भरा हो जाता है। इस सूबे की मिट्टी को अपने शरीर पर मलकर कई पहलवानों ने देश को कुश्ती में मेडल दिलाए हैं। दीपक पूनिया भी उन्हीं में से एक है। झज्झर के रहने वाले दीपक ने छत्रसाल स्टेडियम में सुशील कुमार, बजरंग पूनिया जैसे पहलवानों को देखकर कुश्ती के दांवपेंच में महारत हासिल की। दीपक ने जब कुश्ती शुरू की थी तब उनका लक्ष्य इसके जरिए नौकरी पाना था, जिससे वह अपने परिवार की देखभाल कर सके। मगर ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील की सलाह, ‘कुश्ती को अपनी प्राथमिकता बनाओ, नौकरी तुम्हारे पीछे भागेगी।’ अब दीपक पूनिया देश के कई और पहलवानों के रोल मॉडल बन चुके हैं।
प्रवीण कुमार, वुशु
हरियाणा के रोहतक के रहने वाले 22 वर्षीय प्रवीण कुमार ने विश्व खिताब जीत पूरी दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाया। अक्तूबर 2019 में फिलीपींस में हुई वुशु चैंपियनशिप में 28 साल के इतिहास में विश्व चैंपियन बनने वाले भारत के पहले पुरुष खिलाड़ी बने। उनसे दो साल पहले पूजा कादियान स्वर्ण पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनी थीं।
अमित पंघाल, मुक्केबाजी
हरियाणा के रोहतक जिले में जन्में अमित, सितंबर 2019 को बॉक्सिंग के इस सबसे बड़े इवेंट में सिल्वर जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष मुक्केबाज बने थे। अमित पंघाल इकलौते भारतीय मुक्केबाज हैं, जिन्होंने यूरोप के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित प्रतियोगिता स्ट्रांदजा मेमोरियल में लगातार दो बार गोल्ड मेडल जीता।
आर. प्रग्गनानंधा, शतरंज
आर. प्रग्गनानंधा की उम्र भले ही कम हो, लेकिन उनके इरादे आसमां जितने ऊंचे हैं। महज 12 साल 10 महीने की उम्र में वे भारत के सबसे छोटे और दुनिया के दूसरे सबसे छोटे ग्रांडमास्टर बन गए। भारत के महान शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद भी 18 साल की उम्र में ग्रांडमास्टर बन पाए थे।
निखत जरीन, महिला मुक्केबाज
हक के लिए लड़ना। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना। यहां तक की सत्ता से टकरा जाना ही युवाओं की पहचान है। एक ऐसी ही एथलीट हैं निखत जरीन। 23 वर्षीय इस युवा महिला मुक्केबाज को जब लगा कि, उनके साथ गलत हो रहा है तो उन्होंने अपनी आवाज खेलमंत्री और देश के शीर्ष खेल हुक्मरानों तक पहुंचा दी। निखत ने भारतीय मुक्केबाजी संघ के उस फैसले को टक्कर दे दिया, जिसमें मैरीकॉम को बिना क्वालीफायर खेले ही टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय बॉक्सिंग की टीम में शामिल कर लिया गया था। निखत के लंबे संघर्ष के बाद बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को एक मैच का आयोजन करवाना पड़ा। हालांकि निखत अनुभवी मैरीकॉम के सामने नहीं टिक पाई। ओलंपिक खेलने का सपना, सपना ही रह गया, लेकिन अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने वाली निखत को जमाना याद रखेगा।