पुरानी पेंशन योजना : समस्या नई नहीं विवाद है पुराना

पुरानी पेंशन योजना : समस्या नई नहीं विवाद है पुराना

प्रो. लल्लन प्रसाद
वर्षो से चली आ रही पुरानी पेंशन योजना, जो 2004 में अटल बिहारी बाजपेई की सरकार द्वारा बंद कर दी गई थी और उसकी जगह नई पेंशन योजना शुरू की गई थी, सुर्खियों में है।

विपक्षी पार्टयिां इसे चुनावी मुद्दा बना रही हैं। पुरानी योजना के अंतर्गत सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित पेंशन देने की व्यवस्था थी जो उनके वेतन पर आधारित है। कर्मचारी आखिरी वेतन का आधा पेंशन के रूप में लेने के हकदार होते हैं। महंगाई भत्ते में समय-समय पर वृद्धि का लाभ भी पेंशनधारियों को मिलता है। पेंशनधारी की मृत्यु पर उसके परिजन को भी पेंशन मिलती है। कर्मचारी को पेंशन के लिए सेवा की अवधि में कोई कंट्रीब्यूशन नहीं करना पड़ता। पेंशन का सारा खर्च सरकार उठाती है। पेंशन के अतिरिक्त मेडिकल भत्ता और बिलों की रिइंबर्समेंट के प्रावधान भी हैं। सेवानिवृत्त होने पर कर्मचारी को 20 लाख तक की ग्रेच्युटी भी मिलती है। कर्मचारियों के लिए यह सबसे भरोसेमंद और सुरक्षित योजना रही है। योजना को बंद करने के निर्णय के पीछे सरकार के राजस्व पर बढ़ता बोझ है।
नई पेंशन योजना (एनपीएस) जनवरी, 2004 से शुरू की गई। इसका संचालन पेंशन निधि विनायक एवं विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। कर्मचारी की आयु 60 वर्ष पूरे हो जाने के पश्चात उसे पेंशन दी जाती है। 18 से 70 वर्ष के आयु के नागरिकों के लिए यह उपलब्ध है। योजना बाजार संचालित रिटर्न पर आधारित है। पेंशन ग्राहक अपनी बचत को गैर-निकासी योग्य खाते में जमा करता है। कम से कम रुपये 500 से यह खाता खोला जा सकता है। खाते में जमा राशि निवेश की जाती है। सब्सक्राइबर के लिए तीन विकल्प होते हैं। उच्च जोखिम उच्च रिटर्न मुख्य रूप से इक्विटी मार्केट में निवेश, मध्यम जोखिम मध्यम रिटर्न, सरकारी प्रतिभूतियों के अलावा अन्य ऋण प्रतिभूतियों में निवेश, एवं कम जोखिम कम रिटर्न सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश। सभी चयनित परिसंपत्ति में खाताधारक का योगदान हंड्रेड परसेंट होता है। जितना योगदान कर्मचारी करेगा उतना ही उसे लाभ मिलेगा। खाते से संचित राशि निकालने की कोई सीमा नहीं होती, नामांकन की सुविधा भी होती है। निश्चित पेंशन की गारंटी इस योजना में नहीं होती। निवेश पर आयकर की धारा 80 सीसीडी के अंतर्गत डेढ़ लाख रु पये तक का टैक्स रिबेट मिलता है।

इस योजना के अलावा अटल पेंशन योजना भी है जो मई, 2015 में शुरू की गई थी, इसमें है 1000 से लेकर 5000 रुपये महीने की गारंटीड पेंशन जो 60 साल के बाद पेंशनधारक द्वारा जमा की हुई रकम के आधार पर मिलती है। निजी क्षेत्र के कर्मचारी भी इसका लाभ उठा सकते हैं। इनकम टैक्स में निवेश पर छूट भी ऊपर की योजना जैसी मिलती है। इन दोनों योजनाओं में सरकार की ओर से कोई कंट्रीब्यूशन नहीं होता। मार्च, 2022 में नई पेंशन योजना में 22 .48 लाख एवं राज्यों में 55.77 लाख सब्सक्राइबर थे।

सरकारी पेंशन योजनाओं के अतिरिक्त बीमा कंपनियों द्वारा भी पेंशन योजनाएं चलाई जाती हैं। ऐसी एक वरिष्ठ बीमा योजना एलआईसी के माध्यम से प्रशासित है, जो एकमुश्त राशि के भुगतान पर पॉलिसी होल्डर को प्रति वर्ष 9त्न (मासिक आधार पर देय) की गारंटीकृत दर पर पेंशन देती है। योजना का आरंभ 14 अगस्त, 2014 को हुआ था। एलआईसी द्वारा सृजित रिटर्न के बीच अगर कोई अंतर होता है, तो भारत सरकार द्वारा योजना में सब्सिडी से इसकी भरपाई की जाती है। एलआईसी की एक योजना जीवन अक्षय भी है, जिसमें एकमुश्त रकम जमा करके पेंशन प्राप्त की जा सकती है। एसबीआई द्वारा सरल रिटायरमेंट सेवर योजना चलाई जाती है। निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियां: आईसीआईसीआई,  एचडीएफसी, मैक्स, बजाज अलायंस, एबीएसएलआई, कोटक आदि भी पेंशन योजनाएं चलाती हैं।

देश की आबादी 140 करोड़ है, सरकारी पेंशन पाने वालों की संख्या लगभग 2 करोड़ है: डेढ़ करोड़ राज्यों में और 48 लाख केंद्र सरकार के अंतर्गत। अप्रैल, 2004 के पहले के कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना में हैं। उसके बाद जिन्होंने सरकारी सेवाएं ज्वाइन की हैं, वे नई पेंशन योजना के अंतर्गत हैं। राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ में पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू कर दी गई है, पंजाब और दिल्ली में भी योजना लागू होने जा रही है। पेंशन भुगतान पर  पिछले 5 वर्षो में राज्यों के बजट में 48त्न की वृद्धि हुई, 2021-22 में सभी राज्यों का पेंशन पर खर्च 406867 करोड़ रु पये था जबकि राजस्व 1594665 करोड़ रुपये। कर्ज में डूबे 10 बड़े राज्यों : बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में राजस्व का 12.5त्न पेंशन पर खर्च हो रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, कंट्रोलर एवं ऑडिटर जनरल और मोंटेक सिंह अहलूवालिया सहित अनेक अर्थशास्त्रियों ने पेंशन पर बढ़ते खर्च पर चिंता व्यक्त की है। पुरानी पेंशन योजना यदि फिर से लागू कर दी जाए तो आने वाली पीढ़ी के ऊपर इसका बोझ तेजी से बढ़ेगा। इसे चुनाव जीतने के लालच में रेवड़ी बांटने की संज्ञा दी जा रही है, जो राज्यों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए नकारा नहीं जा सकता।

हिमाचल प्रदेश में हाल के चुनाव में पुरानी पेंशन बहाली बड़ा मुद्दा था। 2021-22 में हिमाचल प्रदेश का कुल राजस्व 9282 करोड़ रु पये था और पेंशन पर होने वाला खर्च 7082 करोड़ रु पये। ऐसी स्थिति में विकास के कार्यों के लिए पैसा कहां बचेगा, रोजगार के नये अवसर कैसे पैदा किए जाएंगे? वर्ष 2023 में देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, विपक्षी पार्टयिां पुरानी पेंशन योजना को बहाल के वादे कर सकती हैं, जिससे राज्यों की वित्तीय व्यवस्था और कमजोर हो सकती है। किंतु पेंशन सामाजिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य है, सरकार की जिम्मेदारी है, कर्मचारियों और आम जनता के हित में ऐसी पेंशन योजना आनी चाहिए जिसमें पेंशनधारी और सरकार, दोनों मिलकर खर्च वहन करें, सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम वृद्ध नागरिक भी पेंशन योजनाओं का लाभ उठा सकें। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में विकसित देशों की तरह भारत में भी सामाजिक सुरक्षा के लिए व्यापक कानून की जरूरत है।

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *