चीन के गायब होते मंत्री

चीन के गायब होते मंत्री

श्रुति व्यास
पहले विदेश मंत्री चिन गांग गायब हुए। आज तक उनका कोई अतापता नहीं है। अब चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू भी लापता है। दोनों ही मंत्री एक समय राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पसंदीदा थे और उनके काफी निकट थे। इन दोनों के मंत्री पद पाने के पीछे के कारण जितने रहस्यमय थे, उनके पतन के कारण भी उतने ही रहस्यमय हैं।स्वभाविक जो मंत्रियों के इस तरह गायब होने की घटनाओं के कारण शी जिनपिंग की राजनीति और उनकी क्षमताओं के लेकर सवाल उठे हैं। पहले चीन के रक्षामंत्री जनरल ली शांगफू पर चर्चा कर ली जाए। वे लगभग तीन हफ़्तों से नजर नहीं आए हैं। खबरों में यह दावा किया जा रहा है कि उन के खिलाफ भ्रष्टचार के आरोप में जाँच चल रही है। वे आखिरी बार 29 अगस्त को देखे गए थे जब उन्होंने चीन-अफ्रीका शांति एवं सुरक्षा मंच को संबोधित किया था। उनकी आखिरी विदेश यात्रा अगस्त माह के मध्य में हुई थी जब वे मास्को और मिन्स्क गए थे।

इस यात्रा के दौरान एक सम्मेलन में उनकी मुलाकात रूसी अधिकारियों और बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको से मुलाकात हुई थी। ली शांगफू के अलावा चिन गांग की नियुक्ति भी मार्च में हुए मंत्रिमंडल के फेरबदल में हुई थी, जिसके बारे में प्रचारित किया गया था कि ऐसा बहुत बारीकी से छानबीन के बाद किया गया। लेकिन इसके कुछ ही महीनों बाद ली शांगफू, चिन गांग के बाद दूसरे ऐसे शीर्ष मंत्री बन गए हैं जो ‘गायब’ हो गए हैं। शी जिनपिंग सन् 2012 से शासन कर रहे हैं और पिछले साल उन्होंने स्वयं को पांच वर्ष के तीसरे कार्यकाल के लिए पार्टी के महासचिव नियुक्त किया जो चीनी नेताओं द्वारा दस वर्ष के कार्यकाल के बाद सत्ता किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने की परंपरा के विपरीत था।

स्वयं को लगभग अनिश्चितकाल के लिए मजबूती से स्थापित करने के बाद शी ने मार्च के महीने में ली शांगफू और चिन गांग को चुना। इससे शी जिनपिंग की सही व्यक्तियों को चुनने की क्षमता पर तो प्रश्नचिन्ह लगा ही, यह भी साबित हुआ है कि वे यह सुनिश्चित नहीं कर सके हैं कि भ्रष्टाचार करने वाले डरें। लेकिन निर्णय लेने की उनकी क्षमता पर प्रश्न उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है जबकि ली और चिन गांग की पदोन्नति का कारण ही यह था कि वे दोनों शी जिनपिंग के निकट थे। हालांकि चीनी राजनीति में रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के पद अन्य देशों जितने महत्वपूर्ण नहीं हैं। वहां वास्तविक शक्ति 24 सदस्यीय पोलितब्यूरो में निहित होती है। लेकिन फिर भी इन दोनों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण थीं – और वह थी वैश्विक मंच पर चीन के हितों का संरक्षण करना।

चीन का मानना था कि चिन गांग अपने कथित क्रियाकलापों के चलते देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गए थे वहीं ली पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिए थे जिससे उनका कैरियर बेहतर हो सकता था क्योंकि चीन यह कह सकता था कि यदि वाशिंगटन रक्षा-मंत्री स्तरीय चर्चाएं दुबारा प्रारंभ करना चाहता है ली के रक्षा मंत्री होने के कारण उन पर लगा प्रतिबंध हटाया जाना होगा। लेकिन आज ली की ‘जांच’ चल रही है और वे गायब हैं। इससे चीन परेशानी में फँस गया है। नैंसी पैलोसी की ताईवान यात्रा के बाद से चीन ने अमरीका से वार्ताएं बंद कर दीं थीं। अब अमेरिका उन्हें बहाल करने के लिए उत्सुक है। और चीन में यह विचार था कि वार्ताएं प्रारंभ होने के पहले ली पर लगे प्रतिबंध हटवा लिए जाएं।

लेकिन अब चूंकि उन्हें पद से ही हटा दिया गया है इसलिए क्या चीनी गतिरोध को समाप्त करवा पाएंगे? और क्या चीन विदेश मंत्रालय की तरह रक्षा मंत्रालय में भी एक नए मंत्री की नियुक्ति करेगा? चीन में अर्थव्यवस्था और विश्व में उसकी स्थिति की तरह राजनीतिक हालात भी डांवाडोल हैं लेकिन शी जिनपिंग को यह कौन बता सकता है कि अगर उनका यही रवैया बना रहा और जल्दी ही वे अकेले रह जाएंगे।

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