संसद में टकराव भी एक राजनीति है
पिछले कई सत्रों से यह देखने को मिल रहा है कि किसी न किसी मसले पर संसद में गतिरोध पैदा होता है और उसके बाद लगातार टकराव चलता रहता है। ऐसा भी लगता है कि दोनों तरफ से गतिरोध दूर करने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन गतिरोध दूर नही होता है। पिछले कई सत्रों से यह भी देखने को मिला है कि लगभग सत्र निर्धारित समय से पहले समाप्त हुए हैं। भले एक दिन पहले ही समाप्त हुआ लेकिन सत्र पहले समाप्त हुआ है। संसद सत्र का एक फीचर यह भी हो गया है कि विपक्षी पार्टियां संसद के परिसर में प्रदर्शन करती हैं और सरकार बिना बहस के बिल पास करा लेती है। सवाल है कि ऐसा सहज रूप से हो रहा है या इसके पीछे कोई राजनीति है? ध्यान रहे संसद को बाधित करना भी संसदीय राजनीति का एक तरीका है, यह बात विपक्ष में रहते भाजपा के नेता अरुण जेटली ने कही थी।
हालांकि यह अभी पता नहीं है कि अभी जिस राजनीति के तहत टकराव हो रहा है और हर बार गतिरोध बन रहा है वह विपक्ष की राजनीति का हिस्सा है या सरकार की राजनीति का? पिछले दो तीन सत्र देखें तो इस ट्रेंड का एक अंदाजा लगता है। मानसून सत्र शुरू होने से एक दिन पहले मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने और उनके साथ यौन हिंसा का वीडियो वायरल हुआ। यह बेहद दुखद और अमानवीय घटना थी, जो चार मई को घटित हुई थी और उसी दिन वीडियो बना था। यह अनायास नहीं था कि वीडियो 19 जुलाई को वायरल हुआ। संभव है कि ज्यादा व्यापक राजनीतिक असर की वजह से वह वीडियो संसद सत्र से पहले जारी किया गया हो। उसका असर साफ दिख रहा है। संसद सत्र की कार्यवाही चार दिन ठप्प रही और अंत परिणति अविश्वास प्रस्ताव में हुई है।