सीट बंटवारे पर कांग्रेस की नई रणनीति

सीट बंटवारे पर कांग्रेस की नई रणनीति

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में सीट बंटवारे की चर्चा नहीं हो रही है क्योंकि कांग्रेस ने इसके लिए मना किया हुआ है। शरद पवार के घर पर 13 सितंबर को कोऑर्डिनेशन कमेटी की बैठक में इस बारे में बात उठी थी लेकिन बैठक शामिल हुए कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कह दिया कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद इस बारे में बात होगी। उसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने यह भी कह दिया कि विपक्षी गठबंधन की अगली यानी चौथी बैठक तीन दिसंबर को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद ही होगी। अब कांग्रेस ने सीट बंटवारे को लेकर नई रणनीति का संकेत दिया है। जानकार सूत्रों के मुताबिक विपक्षी गठबंधन की कोऑर्डिनेशन कमेटी में सीट बंटवारे पर चर्चा नहीं होगी।

बताया जा रहा है कि कांग्रेस राज्यवार सीट बंटवारा चाहती है और यह भी चाहती है कि कांग्रेस के प्रदेश नेता हर राज्य में सीट बंटवारे पर बात करें। अगर कांग्रेस इस बात पर अड़ती है तो फिर कोऑर्डिनेशन कमेटी में सीट बंटवारे पर चर्चा नहीं हो पाएगी क्योंकि उसमें 13 सदस्य हैं और हर राज्य में सबकी मौजूदगी या रूचि नहीं है। मिसाल के तौर पर जेएमएम के सदस्य की महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश में सीट बंटवारे में कोई रूचि नहीं होगी और न डीएमके को झारखंड में कोई रूचि होगी। सो, अगर कांग्रेस की राज्य इकाइयों को सीट बंटवारे के लिए कहा जाता है तो कोऑर्डिनेशन कमेटी में सिर्फ चुनावी रणनीति और साझा न्यूनतम कार्यक्रम आदे के बारे में चर्चा होगी। इसके समन्वयक या संयोजक की भी कोई भूमिका नहीं रह जाएगी।

अगर कांग्रेस की इस रणनीति पर टिकट बंटवारे की बात होती है तो इसका मतलब है कि बिहार में राजद, जदयू, कांग्रेस और लेफ्ट के नेता बैठ कर सीटों का बंटवारा करेंगे। उसमें ‘इंडिया’ गठबंधन की बाकी दो दर्जन पार्टियों का कोई रोल नहीं होगा। इसी तरह हर राज्य में जो मजबूत प्रादेशिक पार्टी है वह कांग्रेस या किसी दूसरी ऐसी पार्टी के साथ बात करेगा, जिसकी उस राज्य की राजनीति में मौजूदगी होगी। जिन राज्यों में गठबंधन तय नहीं है, जैसे उत्तर प्रदेश में तो उन राज्यों में ‘इंडिया’ के बड़े नेता प्रादेशिक पार्टियों के साथ बात करेंगे और उनको गठबंधन में लाने की कोशिश करेंगे।

कांग्रेस की इस रणनीति में एक पेंच ऐसी पार्टियों के साथ तालमेल का है, जिनकी अखिल भारतीय मौजूदगी है या जिनका एक से ज्यादा राज्यों में मजबूत संगठन है। जैसे एनसीपी के नेता महाराष्ट्र से बाहर गोवा, गुजरात, मेघालय आदि राज्यों में भी सीट की मांग कर सकते हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ अगर सीटों का तालमेल होता है तो वह भी राज्यवार मुश्किल लगता है कि क्योंकि सीपीएम और सीपीआई का संगठन अब भी कई राज्यों में है। बहरहाल, कांग्रेस की यह रणनीति प्रादेशिक पार्टियों को चिंता में डालने वाली है क्योंकि प्रदेश संगठनों से बातचीत में एक कॉमन या पूरे देश का एजेंडा बनाने में दिक्कत होगी। अगर यह बात राष्ट्रीय स्तर पर होती तो विपक्ष के बड़े नेता कांग्रेस पर दबाव बना सकते थे और भाजपा को हराने की दुहाई देकर उसके साथ मोलभाव कर सकते थे। राज्यों में यह थोड़ा मुश्किल होगा।

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