जोशीमठ : अधर में लटका भविष्य

जोशीमठ : अधर में लटका भविष्य

जयसिंह रावत
आपदाग्रस्त पौराणिक नगर जोशीमठ को लेकर देश के आठ विशेषज्ञ संस्थानों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट एनडीएमए को सौंप दी हैं। राज्य सरकार ने लगभग उसी आधार पर पुनर्वास एवं मुआवजे का पैकेज भी घोषित कर दिया। लेकिन बावजूद इसके स्थिति स्पष्ट नहीं हो रही है। होगी भी कैसे? जोशीमठ में नित नई दरारों और गड्ढों के कारण स्थिति गंभीर होती जा रही है। पहले से आई दरारें चौड़ी होती जा रही हैं। मकान एवं खेतों के बाद अब बदरीनाथ नेशनल हाईवे में दरारें दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। सडक़ में दरारों के साथ कुछ दिनों से भारी गड्ढे भी होने लगे हैं। नगर के कुछ स्थानों पर बदरीनाथ हाईवे हल्का धंसने भी लगा है। सुनील, स्वी, मनोहरबाग, टिनाग, सिंहधार, मारवाड़ी, चुनार, गांधीनगर, रविग्राम, कोठिला आदि सभी जगहों पर बड़ी तादाद में मकानों में दरारें आ रखी हैं। दरारों के चौड़ा होने से कुछ मकान झुकने लगे हैं।

यह स्थिति तब है जब इस साल शीत ऋतु में बारिश केवल नाममात्र की ही हुई। लोग जून से शुरू होने वाली बरसात की कल्पना से ही सिहर उठते हैं। भूवैज्ञानिक भी बरसात में दरारों में पानी घुसने से उत्पन्न स्थिति की आशंका से चिंतित हैं। जो शहर बिना बरसात ही धंसने लगा हो उसकी हालत बरसात में क्या होगी, यही मारक प्रश्न लोगों को सता रहा है। स्थिति को संभालने के लिए फौरी तौर पर दरारों को मिट्टी गारे से भरने का काम किया जा रहा है। लेकिन जब तक भूमिगत स्थिरता कायम नहीं होती तब तक जमीन में हलचल रहेगी ही। अगर इस बरसात में हालात बदतर नहीं हुए तो सरकार वहां स्थायी पुनर्निर्माण कर सकती है।

दूसरी ओर, सरकार अभी भी जोशीमठ की बरबादी के लिए 520 मेगावॉट क्षमता की तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना को जिम्मेदार मानने को तैयार नहीं है जबकि नागरिकों और स्वतंत्र भूवैज्ञानिकों के साथ ही पर्यावरणविद् भी शुरू से इस परियोजना की सुरंग को जोशीमठ के लिए विनाशकारी मानते रहे हैं। लेकिन अब स्वयं सरकार के ही श्रीदेव सुमन विविद्यालय के भूवैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में इस परियोजना की 13.22 किमी. लंबी सुरंग के निर्माण को जोशीमठ आपदा के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

दरअसल, एक सुरंग खोदने के लिए कुछ अन्य सुरंगें भी खोदनी (एडिट) होती हैं, जिनसे मलबा बाहर निकाला जाता है, और मशीनें अंदर पहुंचाई जाती हैं। इसलिए माना जा सकता है कि जोशीमठ की जमीन के अंदर सुरंगों का जाल बना हुआ है, जहां से भूमिगत पानी का रिसाव हो रहा है। लेकिन रिपोर्ट मिलने के बाद भी सरकार खामोश है क्योंकि परियोजना का लगभग 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

जोशीमठ को लेकर शुरू से ही सरकारें अनिर्णय और भ्रम की स्थिति में रहीं। इस खतरे की घंटी 1976 में मिश्रा कमेटी ने बजा दी थी, लेकिन किसी भी सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। उसी समय नगर का मास्टर प्लान बना कर नगर नियोजन किया जाता और उसकी कैरीइंग कपैसिटी के मुताबिक निर्माण की अनुमति दी जाती तो आज हालात यहां तक नहीं पहुंचते। जोशीमठ के लोग पिछले 14 महीनों से किसी अनिष्ट की आशंका से डरे हुए थे। आशंका के दृष्टिगत राज्य सरकार ने 5 विशेषज्ञ संस्थानों से पिछले साल जुलाई में जोशीमठ की स्थिति का आकलन कराया था। उस विशेषज्ञ दल ने पहले ही जोशीमठ के खतरे से सरकार को अवगत करा दिया था लेकिन सरकार ने विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर ध्यान देने की बजाय कॉमन सिविल कोड और धर्मातरण कानून पर ध्यान केंद्रित किया।

अभी तक आपदाग्रस्त क्षेत्र का बेसलाइन मैप तक तैयार नहीं हो पाया है जबकि नक्शे बनाने वाले संस्थान सर्वे ऑफ इंडिया का मुख्यालय देहरादून में ही है। ड्रोन के माध्यम से कंटूर मैपिंग का प्रयास विफल हो चुका है। आपदाओं का न्यूनीकरण और प्रबंधन तीन चरणों में किया जाता है-पहला, आपदा से पहले रोकथाम का; दूसरा, बचाव एवं राहत का; तथा तीसरा, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण का। लेकिन जोशीमठ के मामले में सरकार के प्रयास तीनों चरणों में खास नजर नहीं आए। राज्य सरकार ने मुआवजे और पुनर्वास के पैकेज की घोषणा तो कर दी लेकिन इसे धरती पर उतारना चुनौती से कम नहीं। कारण, बाढ़, भूकंप जैसी आपदाओं में एक ही झटके में नुकसान हो जाता है, जिसका तत्काल आकलन किया जा सकता है लेकिन यहां स्थिति भिन्न है। कल जो मकान सीधा खड़ा दिखाई देता था, आज टेढ़ा नजर आ रहा है। मकानों पर दरारें चौड़ी होती जा रही हैं।

सरकार ने दरारों वाले लगभग 863 मकानों पर लाल निशान लगाए हुए हैं मगर 181 को ही असुरक्षित बताया है। कुछ लोगों को शिकायत है कि उनके मकानों पर लाल निशान तो लगा दिए गए मगर मकान खाली नहीं कराए गए। मकान असुरक्षित नहीं तो मकानों पर क्रॉस के लाल निशान क्यों लगा दिए गए। वैसे भी वहां मकानों की स्थिति बदलती जा रही है। व्यावहारिक सवाल तो यह है कि जब शहर के नीचे की जमीन खिसक रही हो तो किसी भी मकान को कैसे सुरक्षित माना जा सकता है, और कैसे उसकी आंशिक या पूर्ण क्षतिग्रस्त की श्रेणी तय की जा सकती है।

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