‘काली भेड़’ को पहचानना ‘मुश्किल’ ही नहीं ‘नामुमकिन’ है …

‘काली भेड़’ को पहचानना ‘मुश्किल’ ही नहीं ‘नामुमकिन’ है …

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राष्ट्रपति के चुनाव में हुई जबरदस्त क्रास वोटिंग से देश की सियासत में हलचल मची हुई है। यह साफ हो चुका है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी खेमे से 125 विधायक और 17 सांसदों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट किया। उनके इस कारनामे से न सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को झटका लगा बल्कि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की भी पोल खुल गई। अब जबकि ‘खेल’ हो चुका है चोट खाये दल क्रास वोटिंग करने वाली ‘काली भेड़ों’ की पहचान करने और उन पर कार्रवाई की बात कह रहे हैं। लेकिन सच यह है कि क्रास वोटिंग करने वाले जनप्रतिनिधियों की पहचान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। उन पर तब तक कार्रवाई नहीं की जा सकती जब तक कि वे स्वयं सामने आकर सच कहने की हिम्मत न करें।

राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में सरल भाषा में समझें तो क्रास वोटिंग का अर्थ विधायक या सांसद का अपनी पार्टी के फैसले के खिलाफ जाकर दूसरे प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालना है। क्रास वोटिंग के मत वैध माने जाते हैं। क्रास वोटिंग रोकने के लिए राजनीतिक दल अपने सदस्यों को किसी खास प्रत्याशी के पक्ष में मतदान के लिए व्हिप जारी करते हैं। जो सदस्य इसके खिलाफ जाता है, उस पर पार्टी कार्रवाई कर सकती है। सवाल यह उठता है कि क्रास वोटिंग करने वाले सदस्यों की पहचान कैसे की जा सकती है। इसके लिए राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति के चुनाव में कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। वो इसलिए क्योंकि राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति का मतदान गुप्त प्रक्रिया से होता है। इससे उलट राज्यसभा सांसद के चुनाव में क्रास वोट करने वाले आसानी से पकड़ में आ सकते हैं। दरअसल, राज्यसभा सांसद के चुनाव में व्हिप जारी करने वाला दल अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त करता है जिसे मतदान के वक्त यह देखने का अधिकार होता है कि उसकी पार्टी के सदस्य ने किस प्रत्याशी को वोट दिया है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्रास वोटिंग करने वाले प्रतिनिधि के खिलाफ उसकी पार्टी बहुत सख्त एक्शन नहीं ले पाती। आम तौर पर उन्हें पार्टी से निकालने, निलंबित करने या प्रमुख पदों से हटाने की कार्रवाई की जाती है। लेकिन इसके बावजूद भी जनप्रतिनिधि की सदस्यता बनी रहती है और यही वजह है कि क्रॉस वोटिंग को रोका नहीं जा सका है।

हां ! इतना जरूर है कि कुछ जनप्रतिनिधि ओडिसा के कांग्रेस विधायक मोहम्मद मोकीम जैसे धाकड़ भी होते हैं जो अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सार्वजनिक भी कर देते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के बाद मोहम्मद मोकीम ने कहा कि “मैं कांग्रेस विधायक हूं लेकिन मैंने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया है। यह मेरा निजी फैसला है क्योंकि मैंने दिल की सुनी जिसने मुझे अपनी धरती के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया”।

अब देखना दिलचस्प होगा कि द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करने वाला उत्तराखण्ड का एकमात्र कांग्रेस विधायक ओडिसा के विधायक मोहम्मद मोकीम की तरह ‘जांबाज’ है या नहीं।



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