ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी, कहते हैं 6 माह तक जलता रहता है धाम में दीपक

ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी, कहते हैं 6 माह तक जलता रहता है धाम में दीपक

[ad_1]

देहरादून । ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के धाम केदारनाथ धाम की कहानी भी बेहद अनोखी है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि पांडवों ने केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं पुराणों के अनुसार यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे। केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला भाग है। स्कंद पुराण के मुताबिक केदारनाथ का भगवान शिव का चिर-परिचित आवास है और भू-स्वर्ग के समान है। वहीं केदारखंड में उल्लेख है कि बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है। हर साल भैया दूज पर केदारनाथ धाम के कपाट छह माह के लिए बंद हो जाते हैं। इस दौरान मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन कहते हैं कि शीतकाल के लिए कपाट बंद होने पर छह माह तक मंदिर में दीपक नित्‍य जलता रहता है।

पुराणों के अनुसार केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने तपस्या की थी। उनकी तपस्‍या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनकी प्रार्थनानुसार सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वर प्रदान किया था। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है।

पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे भगवान शंकर
केदारनाथ धाम के बारे में एक कथा यह भी प्रचलित है। जिसके अनुसार पांडवों की भक्ति के प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें भ्रातृहत्‍या से मुक्‍त कर दिया था। कहा जाता है क‍ि महाभारत में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। लेकिन भगवान उनसे रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में चले गए। पांडव भी उनके दर्शनों के लिए केदार पहुंच गए। शिवजी ने भैंसे का रूप धर लिया और अन्य पशुओं के बीच चले गए। त‍ब भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाडों पर अपने पैर फैला दिए। सब पशु तो निकल गए, लेकिन शंकरजी रूपी भैंसे ने ऐसा नहीं किया। भीम बलपूर्वक इस भैंसे पर झपटे, लेकिन भैंसा भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंसे की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।

भगवान शिव पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए और दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। मान्‍यता है कि उसी समय से भगवान शिव भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ धाम में पूज्‍य हैं।



[ad_2]

Source link

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *