मत्स्यपालन : रोजगार, पर्यटन, आयवृद्धि और प्रोटीन की उपलब्धता

मत्स्यपालन : रोजगार, पर्यटन, आयवृद्धि और प्रोटीन की उपलब्धता

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प्रेम बहुखंडी, वरिष्ठ पत्रकार

देहरादून । कल टिहरी गढ़वाल के जौनपुर क्षेत्र की अखलाड गाड़ मतलब अखलाड नदी में, मौन मेला था। मौन का मतलब बेहोशी होता है। इस दिन जौनपुर क्षेत्र के लोग, नदी में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों को पीसकर डाल देते हैं। जिससे मछलियां बेहोश हो जाती हैं और लोग उन्हें आसानी से पकड़ लेते हैं। संभव है कि इस मौन के कारण, मछ्ली के अंडे, छोटे बच्चे और अन्य जलीय जीवों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता होगा। हालांकि यह नदी कुछ दूर पर यमुना नदी में मिल जाती है इसलिए हर वर्ष यमुना से इसमें दुबारा मछलियां आ जाती होंगी, और यहां का जलीय जीवन दुबारा ठीक हो जाता होगा।

इस नदी में यह परंपरा कब से और क्यों शुरू हुई पता नहीं, लेकिन लोग कहते हैं कि इस नदी की मछलियां बहुत स्वादिष्ट होती हैं। और शायद इसी कारण राजा ने स्थानीय जनता के मछ्ली मारने पर प्रतिबंध लगाया होगा और फिर साल में एक दिन, वो भी बरसात आने से पहले, स्थानीय जनता को मछली मारने की इजाजत दी होगी।

बहराल, इतिहास कुछ भी हो, लेकिन अगर इस गाड़ की मछलियां सचमुच स्वादिष्ट होती हैं तो क्यों नहीं इस पर, और इसके किनारे की जमीन पर, बड़े पैमाने पर मत्स्यपालन किया जा रहा है? पिछले वर्ष, हम लोग, पूर्व मुख्यमंत्री Harish Rawat हरीश रावत, जोतसिंह बिष्ट Jot Singh Bisht , मनमोहन मल्ल Manmohan Singh Malla , अमरेंदर बिष्ट आदि, जौनपुर गए थे, हमनें अखलाड की मछली भी खाई थी और तब हम लोगों ने घोषणा की थी कि यदि 2022 में कांग्रेस सरकार बनी तो हम अखलाड गाड़ में विशेष मत्स्यपालन क्षेत्र विकसित करेंगे। यह बात कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी लिखी गई थी।

यही स्थिति पौड़ी की नयार (सतपुली) की भी है, वहां के लोगों का भी मानना है कि नयार की मछलियां बहुत स्वादिष्ट होती हैं, हालांकि सतपुली के आसपास जो मछलियां मिलती हैं वो सब बाहर से आयातित होती हैं। तो सवाल यह है कि भले ही कांग्रेस चुनाव हार गई है लेकिन अखलाड गाड़ और नयार की मछलियों का स्वाद तो बरकरार है। तो फिर वर्तमान सरकार क्यों नहीं इन क्षेत्रों को विशेष मत्स्यपालन क्षेत्र के रूप में विकसित करती है?



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