“सरूली मेरू जिया लगीगे” की याद दिलाता प्रीतम भरतवाण का नया श्रृंगार जागर “राजक्यूंलि”

“सरूली मेरू जिया लगीगे” की याद दिलाता प्रीतम भरतवाण का नया श्रृंगार जागर “राजक्यूंलि”

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पद्मश्री जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण का नया प्रेमगीत (श्रृंगार जागर) “राजक्यूंलि” बहुत ही खूबसूरत है। गीत सुनकर औऱ देखकर आप कह सकते हैं यह गीत “सरूली मेरू जिया लगीगे” की याद दिलाता है। जागर के ही नहीं प्रीतम अपने नाम के अनुरूप प्रेमगीतों के भी सम्राट है। खासतौर से युवाओं का इंतजार खत्म करते हुए प्रीतम भरतवाण मानसून की फुवारों से पहले “राजक्यूंलि” के जरिये हमारे बीच है। जबरदस्त रचना, कर्णप्रिय गीत-संगीत औऱ मनमहोक लोकेशन ने गीत में चार चाँद लगाने का काम किया है। प्रियंका थापा व सतेंद्र सकलानी का अभिनय भी शानदार है।

प्रीतम भरतवाण उत्तराखण्ड के विख्यात लोक गायक हैं। भारत सरकार ने उन्हें 2019 में पद्मश्री परुस्कार से समानित किया। वे उत्तराखण्ड में बजने वाले ढोल के ज्ञाता हैं। उन्होंने राज्य की विलुप्त हो रही संस्कृति को बचाने में अमूल्य योगदान दिया है। वे एक अच्छे जागर गायक और ढोल वादक के साथ ही अच्छे लेखक भी हैं। साथ ही उन्हें दमाऊ, हुड़का और डौंर थकुली बजाने में भी महारत हासिल है। जागरों के साथ ही उन्होंने लोकगीत, घुयांल और पारंपरिक पवाणों को भी नया जीवन देने का काम किया है।

1988 में प्रीतम भरतवाण ने सबसे पहले आकाशवाणी के माध्यम से अपनी प्रतिभा दिखाई। उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1995 में प्रीतम भरतवाण की कैसेट रामा कैसेट से तौंसा बौं निकली। इस कैसेट को जनता ने हाथों-हाथ लिया। उन्हे सबसे अधिक लोकप्रियता उनके गीत ‘सरूली मेरू जिया लगीगे’ गीत से मिली। यह गीत आज भी सबसे लोकप्रिय गढ़वाली गीतों में शामिल है जिसके अब न जाने कितने रिमिक्स बन चुके हैं।

प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखण्ड की संस्कृति का विदेशों में भी खूब प्रचार-प्रसार किया है। अमेरिका, इंग्लैंड जैसे कई देशों में उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रदर्शन किया है। प्रीतम भरतवाण का जन्मदिन अब उत्तराखंड में ‘जागर संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।



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