असम में बाढ़ : क्यों शापित है यह सूबा?

असम में बाढ़ : क्यों शापित है यह सूबा?

पंकज चतुर्वेदी
इस बार जल-प्लावन कुछ पहले आ गया, चैत्र का महीना खत्म हुआ नहीं और पूरा राज्य जलमग्न हो गया। इस समय असम के 20 जिलों के 2246 गांव बुरी तरह बाढ़ की चपेट में हैं। पांच लाख से अधिक लोग पीडि़त हुए हैं और 35 हजार लोग 140  राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। अभी तक दो लोगों की जान गई हैं। सडक़ों, पुल, बिजली वितरण तंत्र, सरकारी इमारतों के साथ-साथ 10,782 हेक्टेयर खेतों की फसल नष्ट हो गई। कोई चार लाख 28 हजार पालतू मवेशी संकट में हैं। वैसे अभी तो यह शुरुआत है, और अगस्त तक राज्य में यहां-वहां पानी ऐसे ही विकास के नाम पर रची गई संरचनाओं को  उजाड़ता रहेगा। हर साल राज्य के विकास में जो धन व्यय होता है, उससे ज्यादा नुकसान दो महीने में ब्रह्मपुत्र का कोप कर जाता है।

असम पूरी तरह से नदी घाटी पर ही बसा हुआ है। इसके कुल क्षेत्रफल 78 हजार 438 वर्ग किमी. में से 56 हजार 194 वर्ग किमी. ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में है और बाकी 22 हजार 244 वर्ग किमी. का हिस्सा बराक नदी की घाटी में है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक, असम का कुल 31 हजार 500 वर्ग किमी. हिस्सा बाढ़ पीडि़त है यानी असम के क्षेत्रफल का करीब 40 फीसदी हिस्सा बाढग़्रस्त है। अनुमान है कि इससे सालाना कोई 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। राज्य में इतनी मूलभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस साल लगते हैं जबकि हर साल औसतन इतना नुकसान हो ही जाता है यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है।

असम में प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन और बेहतरीन भौगोलिक परिस्थितियां होने के बावजूद यहां का समुचित विकास न होने का कारण हर साल पांच महीने ब्रह्मपुत्र का रौद्र रूप होता है, जो पलक झपकते ही सरकार और समाज की साल भर की मेहनत को चाट जाता है। वैसे तो यह नद सदियों से बह रहा है। बारिश में हर साल यह पूर्वोत्तर राज्यों में गांव-खेत बरबाद करती रही है। वहां के लेगों का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन इसी नदी के चहुंओर थिरकता है। सो, तबाही को भी वे प्रकृति की देन ही समझते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह सें बह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ आ रही है, वह हिमालय के ग्लेशियर  क्षेत्र में मानवजन्य छेड़छाड़ की ही परिणाम है। केंद्र हो या राज्य, सरकारों का ध्यान बाढ़ के बाद राहत कायरे और मुआवजे पर रहता है। दुखद ही है कि आजादी के 75  साल बाद भी हम वहां बाढ़ नियंतण्रकी कोई मुकम्मल योजना नहीं दे पाए हैं।

यदि इस अवधि में राज्य में बाढ़ से हुए नुकसान और बांटी गई राहत राशि को जोड़ें तो पाएंगे कि इतने धन में एक नया सुरक्षित असम खड़ा किया जा सकता था। पिछले कुछ सालों से ब्रह्मपुत्र का प्रवाह दिनोंदिन रौद्र होने का मुख्य कारण इसके पहाड़ी मार्ग पर अंधाधुंध जंगल कटाई माना जा रहा है। ब्रह्मपुत्र का प्रवाह क्षेत्र उत्तुंग पहाडिय़ों वाला है, वहां कभी घने जंगल हुआ करते थे। उस क्षेत्र में बारिश भी जम कर होती है। बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं लेकिन जब पेड़ कम हुए तो ये बूंदें सीधी जमीन से टकराने लगीं। इससे जमीन की टाप सॉयल उधड़ कर पानी के साथ बह रही है।  फलस्वरूप नदी के बहाव में अधिक मिट्टी जा रही है। इससे नदी उथली हो गई है, और थोड़ा पानी आने पर ही इसकी जल धारा बिखर कर बस्तियों की राह पकड़ लेती है।

असम में हर साल तबाही मचाने वाला ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां, उनकी कोई 48 सहायक नदियां और  उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई और बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। असम की अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती-किसानी है, और बाढ़ का पानी हर साल लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसल को नष्ट  कर देता है। ऐसे में किसान कभी भी कर्ज से उबर ही नहीं पाता। एक और बात यह है कि ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का अनुमान लगाना बेहद कठिन है। इसकी धारा की दिशा कहीं भी, कभी भी  बदल जाती है। इससे जमीनों का कटाव, उपजाऊ जमीन का नुकसान होता रहता है। यह क्षेत्र भूकंपग्रस्त है और समय-समय पर यहां हल्के-फुल्के झटके आते रहते हैं.जमीन खिसकने की घटनाएं भी खेती-किसानी पर असर डालती हैं। इस क्षेत्र की मुख्य फसलें धान, जूट, सरसों, दालें और गन्ना हैं। धान और जूट की खेती का समय ठीक बाढ़ के दिनों का ही होता है। धान की खेती का 92 प्रतिशत आहू, साली बाओ और बोडो किस्म की धान का है, और इनका बड़ा हिस्सा हर साल बाढ़ में धुल जाता है।

राज्य में नदी पर बनाए गए अधिकांश  तटबंध और बांध 60 के दशक में बने थे। अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं। उनमें गाद भी जम गई है, जिसकी नियमित सफाई की व्यवस्था नहीं है। पिछले साल पहली बारिश के दवाब में 50 से अधिक स्थानों पर ये बांध टूटे थे। इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेढ़ टूटने से जलनिधि के गांव में फैलने की खबर है। वैसे मेढ़ टूटने की कई घटनाओं में खुद गांव वाले ही शामिल होते हैं। मिट्टी के कारण उथले हो गए बांध में जब पानी लबालब भर कर चटकने की कगार पर पहुंचता है, तो गांव वाले अपना घर-बार बचाने के लिए मेढ़ तोड़ देते हैं। उनका गांव तो थोड़ा-सा बच जाता है पर करीबी बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं। बराक नदी गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी पण्राली की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी नदी है। इसमें उत्तर-पूर्वी भारत के कई सौ पहाड़ी नाले आकर मिलते हैं, जो इसमें पानी की मात्रा और उसका वेग बढ़ा देते हैं। वैसे इस नदी के मार्ग पर बाढ़ से बचने के लिए कई तटबंध, बांध आदि बनाए गए हैं, और ये तरीके कम बाढ़ में कारगर भी रहे हैं।

ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए दिसम्बर, 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी। बोर्ड ने ब्रह्मपुत्र और बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी। केंद्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंतण्रमहकमा कई सालों से काम कर रहा है, और उसके रिकार्ड में ब्रह्मपुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढग़्रस्त क्षेत्रों में से है। महकमे ने इस दिशा  में अभी तक क्या कुछ किया? उससे कागज और आंकड़ों को जरूर संतुष्टि हो सकती है पर असम के आम लेगों तक तो उसका काम पहुंचा नहीं है। असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध और तटबंधों की सफाई, नये बांधों का निर्माण जरूरी है।

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