विपक्षी गठबंधन का तालमेल बिगड़ा है

विपक्षी गठबंधन का तालमेल बिगड़ा है

अजीत द्विवेदी

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में अभी तक सब कुछ तय योजना के तहत होता दिख रहा था। एकदम परफेक्ट को ऑर्डिनेशन था और अगर थोड़ी-बहुत खींचतान थी तो पार्टियां उसे सामने नहीं आने देती थीं। जैसे बेंगलुरू में हुई दूसरी बैठक में गठबंधन के नाम को लेकर और संयोजक पर फैसला नहीं होने से नीतीश कुमार नाराज थे लेकिन पटना पहुंच कर उन्होंने स्थिति स्पष्ट कर दी थी, नाराजगी पर परदा डाल दिया था। मुंबई की बैठक में भी कई चीजों पर असहमति थी लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इसे जाहिर नहीं होने दिया। परंतु उसके बाद से ही पार्टियों का तालमेल बिगड़ा है। नई दिल्ली में शरद पवार के घर पर हुई ‘इंडिया’ की समन्वय समिति की पहली बैठक में परफेक्ट कोऑर्डिनेशन नहीं दिखा। ऐसा लगा कि पार्टियां तैयार होकर बैठक में नहीं पहुंची थीं। ज्यादातर नेताओं ने यह कहते हुए फैसला टाला कि उनको अपनी पार्टी में बात करनी होगी। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल इस समन्वय समिति के सदस्य हैं और शरद पवार के बराबर में बैठे थे लेकिन वे भी कोई फैसला करने की स्थिति में नहीं थे। समन्वय समिति के ज्यादातर सदस्य ऐसे हैं, जो अपनी पार्टी के सर्वोच्च नेता नहीं हैं। इसलिए वे संदेशवाहक की तरह वहां बैठे थे।

उस बैठक में सिर्फ एक फैसला हुआ, जिसे कांग्रेस ने एकतरफा तरीके से पलट दिया। शरद पवार के घर पर हुई बैठक में तय किया गया था कि ‘इंडिया’ की पहली साझा रैली अक्टूबर में भोपाल में होगी। लेकिन कांग्रेस ने अपनी ओर से वह रैली रद्द कर दी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने रैली रद्द कराई क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि सनातन धर्म पर डीएमके नेताओं की टिप्पणियों के बाद कोई ऐसी रैली उनके वहां हो, जिसमें डीएमके और सनातन की परंपराओं व मान्यताओं का विरोध करने वाली कुछ अन्य पार्टियों के नेता शामिल हों। कायदे से यह बात मीटिंग में शामिल वेणुगोपाल के दिमाग में आनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने यह सवाल नहीं उठाया। भोपाल रैली रद्द किए जाने से कई पार्टियों के नेता हैरान थे क्योंकि उनको भरोसे में नहीं लिया गया था। उसके बाद नागपुर में रैली की बात हो रही है तो वेणुगोपाल कह रहे हैं कि उनको पार्टी के अंदर बात करनी होगी। यह पहला मामला है, जिस पर विपक्षी पार्टियों की फॉल्टलाइन सामने आई।

दूसरा और सबसे बड़ा मामला सीटों के बंटवारे का है। शरद पवार के घर पर हुई बैठक में नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कह दिया कि पार्टियां की जीती हुई सीटों पर कोई बात नहीं होनी चाहिए। यानी जो सीटें हारी हुई हैं उन्हीं के बंटवारे के बारे में बात होनी चाहिए। यह फॉर्मूला कई पार्टियों के गले नहीं उतर रहा है। बिहार में जदयू 16 सांसदों वाली पार्टी है, जबकि राजद का एक भी सांसद नहीं है। ममता बनर्जी भी 20 सीटें हारी हुई हैं। सो, पार्टियों को दूसरा फॉर्मूला तैयार करना है, जिसके बारे में ममता बनर्जी ने अक्टूबर के अंत तक की टाइमलाइन दी है। इस बीच कम्युनिस्ट पार्टियों ने तालमेल से इनकार कर दिया है। इसका अंदाजा 13 सितंबर को शरद पवार के घर पर हुई बैठक में ही लग गया था, जब वहां सीपीएम ने अपना प्रतिनिधि नहीं भेजा। मुंबई की बैठक में 13 सदस्यों की समन्वय समिति बनी थी और कहा गया था कि 14वां सदस्य सीपीएम का होगा, जिसका नाम पार्टी की ओर से बाद में बताया जाएगा।

अब सीपीएम ने तय किया है कि समन्वय समिति में उसका सदस्य नहीं होगा। इस तरह ‘इंडिया’ की समन्वय समिति 13 सदस्यों की ही रहने वाली है। बताया जा रहा है कि सीपीएम ने यह फैसला इसलिए किया है क्योंकि उसे केरल में कांग्रेस से और पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस से तालमेल नहीं करना है। बाकी राज्यों में वह किसी भी पार्टी के साथ तालमेल के लिए तैयार है। उसे बिहार में राजद-जदयू और तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस और तेलंगाना में कांग्रेस के साथ तालमेल करना है लेकिन केरल, बंगाल और त्रिपुरा में नहीं करना है। असल में इन्हीं तीन राज्यों में उसका वजूद है इसलिए इन तीनों राज्यों में उसे तालमेल नहीं करना है। इसका रणनीतिक कारण है। इन तीनों राज्यों में उसके तालमेल का फायदा भाजपा को हो सकता है। इसलिए उसका अलग लडऩे की बात करना समझ में आता है लेकिन यह काम आपसी तालमेल और समझदारी के साथ किया जा सकता है। ध्यान रहे इससे पहले कम्युनिस्ट नेता विपक्षी एकता बनाते रहे हैं लेकिन इस बार वे तालमेल बिगाडऩे का काम कर रहे हैं।

सैद्धांतिक मसलों पर भी विपक्षी पार्टियों के गठबंधन में विभाजन दिखाई दिया है। विपक्षी गठबंधन के लिए चुनाव का सबसे बड़ा एजेंडा जातीय जनगणना और आरक्षण का होने वाला है। तभी सोनिया और राहुल गांधी तक जाति जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं और आबादी क  अनुपात में आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग भी कर रहे हैं। मंडल की राजनीति करने वाली तमाम पार्टियां इसका समर्थन कर रही हैं लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की इस पर अलग राय है। उनकी पार्टी जाति जनगणना के पक्ष में नहीं है। इस मसले पर उनका विरोध भी खुल कर सामने आ गया। इसी तरह ‘इंडिया’ की समन्वय समिति की पहली बैठक के बाद उसकी मीडिया कमेटी ने एक राय से फैसला किया कि गठबंधन की पार्टियां 14 न्यूज एंकर्स के कार्यक्रम में अपने प्रवक्ता नहीं भेजेंगी। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस आइडिया के सहमत नहीं थे तो उन्होंने मीडिया के सवाल के जवाब में कह दिया कि उनको इस बारे में पता नहीं है। सोचें, उनके नेता समन्वय समिति की बैठक में शामिल हुए थे और मीडिया कमेटी में भी हैं फिर भी उन्होंने कहा कि उनको इस फैसले के बारे में पता नहीं है। ध्यान रहे ममता बनर्जी और नीतीश कुमार उन चंद विपक्षी मुख्यमंत्रियों में थे, जो जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति की ओर से दिए गए रात्रिभोज में शामिल हुए थे। ये दोनों नेता अपने विरोध को सार्वजनिक करने की बजाय ‘इंडिया’ के प्लेटफॉर्म पर कह सकते थे।

सो, पिछले तीन महीने में हुई विपक्षी गठबंधन की तीन बैठकों में जहां सब कुछ तय लाइन पर आगे बढ़ता दिख रहा था वहीं तीसरी बैठक के बाद फॉल्टलाइन्स उभर कर सामने आने लगी हैं। पार्टियां अपनी अपनी पोजिशनिंग में लग गई हैं। अरविंद केजरीवाल जैसे नेता चुनावी राज्यों में प्रचार तेज कर रहे हैं ताकि कांग्रेस पर दबाव बने तो एनडीए के साथ रह चुकी पार्टियां अलग तरह से दबाव बना रही हैं। इस समय किसी बड़े नेता की जरूरत है, जो अपना हित छोड़ कर पार्टियों को एकजुट रखने का काम करे। पार्टी में टूट से शरद पवार का मनोबल गिरा हुआ है और लालू प्रसाद की सेहत अच्छी नहीं है। ऐसे में मल्लिकार्जुन खडग़े और नीतीश कुमार ये दो नेता हैं, जिनको इस काम की जिम्मेदारी दी जा सकती है।

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